Saturday, August 3, 2013

ईमानदारी

शुक्र है ईमानदारी को

उतनी फफूंदी नहीं लगी


जितनी थी अपेक्षित


इस भ्रष्टाचार की


उमस में !


तो हम यह मान लें


कि सिद्धांतों व आदर्शों के


वातानुकूलित यंत्र


कारगर हैं अब भी ...


शायद रहें हमेशा !


सभी हाथ व्यस्त नहीं हैं


बेईमानी के पाँव पखारने में,


उन्हें जूतियाँ पहनाने में !


कुछ मशगूल हैं


उनकी राहों में


काँटे बोने में .....


उन हाथों को हमें


संरक्षित करना होगा


तभी 'हम ' 


संरक्षित रह पायेंगे ......


सम्बन्धों के हाशिये

अपेक्षित है सम्बन्धों का 
जीवन के केंद्र में होना 
पर प्राय: 
चले जाते हैं 
हाशिये पर वे 
सरक -सरक कर 
स्वार्थों, व्यस्तताओं और 
महत्वाकांक्षाओं की 
गाढ़ी तरलताओं की 
साज़िश का शिकार होकर ,
उनमे बह -बहकर !
और वहीं से चीख -चीखकर 
दुहाई माँगते हैं 
अपने प्राणों की !
सुन लिए जाने वाले 
बचा लिए जाते हैं 
कभी -कभार ,
हाशिये से खींच लाये जाते हैं 
परिधि के भीतर 
और अनसुने 
वहीं 
हाशिये का तट पकड़े 
मदद की गुहार लगाते 
अन्ततः 
छोड़ देते हैं हाथ 
तोड़ देते हैं दम !!