'प्यार को प्यार ही रहने दो, कोई नाम न दो...' लिखने वाले ने तो लिख डाला यह गीत.. और बहुत लोकप्रिय भी रहा, आज भी है। पर सोचने वाली बात यह है कि प्यार को क्यों कोई नाम न दिया जाए, जबकि इस एक शब्द में कई-कई अर्थ निहित हैं ! इस बात से मैं पूरी तरह सहमत हूँ कि प्यार कोई बोल नहीं, प्यार आवाज़ नहीं लेकिन प्यार बहुत कुछ है, जिसकी अनुपस्थिति में वह लगभग नहीं ही है। मेरे विचार में प्यार एक ख़ूबसूरत अहसास के साथ-साथ एक प्रेरणा है, एक दायित्व है, एक औषधि है, एक कर्तव्य है, एक आवश्यकता है। इनमें से कम से कम एक तत्व प्रेम कहानी में अवश्य होता है।
जैसा कि हम में से अधिकतर लोग जानते और मानते हैं, प्रेम हमारे जीवन में प्रेरणा व उत्साह का संचार करता है। कभी उस व्यक्ति के चेहरे को ग़ौर से देखिए, जो नया-नया प्रेम में पड़ा है। एक ख़ुशनुमा व आभायुक्त चेहरा आपके सामने होगा। कोई हमें प्रेम करता है ,यह ख़याल ही हमें ख़ुद से प्रेम /अधिक प्रेम करने का कारण बन जाता है। अचानक अपनी दृष्टि में अपना स्थान बढ़ जाता है। एक आत्म विश्वास की दीप्ति हमारे व्यक्तित्व से फूटने लगती है। एक निखार हम ख़ुद में स्पष्ट महसूस कर पाते हैं। हमारी अपने जीवन-लक्ष्यों के प्रति हमारे प्रेमी की सहमति व अनुशंसा निश्चय ही हमारे लक्ष्य प्राप्ति में बहुत सहायक सिद्ध होती है। हम दुगुने उत्साह के साथ अपने लक्ष्य के प्रति अग्रसर होते हैं ...अपने प्रेमी की नज़रों में और अधिक अच्छा करने के लिए, उससे और अनुशंसा पाने के लिए, उसे ऐसे अवसर देने के लिए, जिनके कारण वह हम पर, हमसे जुड़ने पर गर्व महसूस कर सके। इसी प्रकार प्रेम की मधुरता व विनम्रता हमारे जीवन में औषधि का कार्य करती है। समय व रिश्तों से मिले हुए गहरे से गहरे ज़ख़्म भी तीव्रता से भरने लगते हैं।
यह तो हुआ कि हमें प्रेम में क्या-क्या मिलता है। अब ज़रा इस पर भी नज़र डालें कि प्रेम हमसे क्या चाहता है ! प्रायः लोग इस पक्ष को नज़र अंदाज़ करना चाहते हैं कि प्रेम में उनसे क्या अपेक्षित है और प्रेम संबधों की असफलता का ठीकरा बहुत आसानी से दूसरे पक्ष पर फोड़ देते हैं। वह पहलू है दायित्व ! जी हाँ... ठीक सुना आपने। दायित्व, अर्थात् ज़िम्मेदारी। ज़िम्मेदारी अपने साथी को समझने की, कि कब-कब उसे हमारी ज़रूरत है ,किन अवसरों पर वह हमसे क्या अपेक्षा रखता है, उसके जीवन की किस कमी को हम पूरा कर सकते हैं। शायद ये बातें बहुत काल्पनिक लगें, लेकिन सत्य हैं। प्रेम एक दायित्व भी है, जिसे न निभाने की दशा में वह धीरे-धीरे लुप्त होता चला जाता है। यदि हम प्रेम में पाने के साथ-साथ देने के प्रति भी उतने ही गंभीर हों, तो कोई कारण नहीं कि हमारे जीवन से प्रकृति का यह सबसे अमूल्य संबंध खो जाए। इस फूल की महक को ताज़ा रखने और अपने जीवन को सुवासित रखने के लिए इतना जतन तो लाज़मी है न !