शुक्र है ईमानदारी को
उतनी फफूंदी नहीं लगी
जितनी थी अपेक्षित
इस भ्रष्टाचार की
उमस में !
तो हम यह मान लें
कि सिद्धांतों व आदर्शों के
वातानुकूलित यंत्र
कारगर हैं अब भी ...
शायद रहें हमेशा !
सभी हाथ व्यस्त नहीं हैं
बेईमानी के पाँव पखारने में,
उन्हें जूतियाँ पहनाने में !
कुछ मशगूल हैं
उनकी राहों में
काँटे बोने में .....
उन हाथों को हमें
संरक्षित करना होगा
तभी 'हम '
संरक्षित रह पायेंगे ......
उतनी फफूंदी नहीं लगी
जितनी थी अपेक्षित
इस भ्रष्टाचार की
उमस में !
तो हम यह मान लें
कि सिद्धांतों व आदर्शों के
वातानुकूलित यंत्र
कारगर हैं अब भी ...
शायद रहें हमेशा !
सभी हाथ व्यस्त नहीं हैं
बेईमानी के पाँव पखारने में,
उन्हें जूतियाँ पहनाने में !
कुछ मशगूल हैं
उनकी राहों में
काँटे बोने में .....
उन हाथों को हमें
संरक्षित करना होगा
तभी 'हम '
संरक्षित रह पायेंगे ......