देखी उड़ान उसकी तो
क्यों दिल दहल गये
अनगिनत हैं तीर क्यूँ
छाती पे चल गये !
थे मुरीद जाने किस
ज़माने से उनके
तेवर जो देखे उनके
तो हम और मचल गये !
है हौसला या है जुनूं
क्यों फेर में पड़िए
ये देखिये के पत्थरों के
दिल पिघल गये !
जाने कशिश थी कैसी
उसकी सदाओं में
खामोश कब से थे जो
वो पर्वत भी हिल गये !
था चला अकेला अपनी
जानिब-ए-मंज़िल
अब देखिये तो
कितने कारवां में जुड़ गये !
है चमकता तारा
सुनहरे फलक का वो
नूर डाला ऐसा
अँधेरे भी जल गये !
हैं दुआएं सबके दिलों की
उसीके संग
बिगड़े रवाज-ओ-रस्म को
पल में बदल गये !
चलते थे बहकी चाल जो
कैसे सम्भल गये !
बेरंग थे जो बुत
उसके रंग में रंग गये !!
सत्यमेव जयते:))))
ReplyDeletebilkul sach hai mukesh ji ! bhagwan k ghr der h, andher nhi h .....:))
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