Friday, June 1, 2012

न आज़माओ

       
        " न आजमाओ "
       और अवाम को न आज़माओ 
       सत्ताधारियों बाज़ आ जाओ 
       चुक गयी है सहनशक्ति अब 
       कहीं पे तो विराम लगाओ !!
             जीने लायक नहीं कुछ छोड़ा 
             न ही ज्यादा, न ही थोड़ा
             खुद महलों के भोग करो तुम 
             हमसे छप्पर भी ले जाओ 
             कहीं पे तो विराम लगाओ !!
    पानी, बिजली, ईंधन सब पर 
    इतना 'कर' कर दिया है क्यूँकर 
    हवा-प्रकाश जो देती कुदरत 
    उनको भी क्यूँ मुफ्त दिलाओ 
    कहीं पे तो विराम लगाओ !!
             कितना बड़ा है उदर तुम्हारा ?
             कितने में बोलो होगा गुज़ारा ?
             जिस जनता ने चुना है तुमको 
             उसी को लूट-खसोट के खाओ !
             कहीं पे तो विराम लगाओ !!
    अभी तो जागा है एक अन्ना 
    बोलो क्या है तुम्हारी तमन्ना ?
    सौ करोड़ अन्ना बन जाएँ 
    उस सैलाब में तुम बह जाओ ?
    कहीं पे तो विराम लगाओ !!
              इक दिन घड़ा सभी का भरता 
              'वो' सबका इन्साफ है करता 
               ऐसा न हो अगले दशहरे
               तुम रावण का पात्र निभाओ 
               कहीं पे तो विराम लगाओ !!
               सत्ताधारियों बाज़ आ जाओ  !!! 

3 comments:

  1. बहुत गजब ललकारा है,
    अब हिंदुस्तान हमारा है ||

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    1. बिल्कुल जी ! अब और सहन नहीं होता !!

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    2. धन्यवाद् संतोष जी ! :)

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