" न आजमाओ "
और अवाम को न आज़माओ
सत्ताधारियों बाज़ आ जाओ
चुक गयी है सहनशक्ति अब
कहीं पे तो विराम लगाओ !!
जीने लायक नहीं कुछ छोड़ा
न ही ज्यादा, न ही थोड़ा
खुद महलों के भोग करो तुम
हमसे छप्पर भी ले जाओ
कहीं पे तो विराम लगाओ !!
पानी, बिजली, ईंधन सब पर
इतना 'कर' कर दिया है क्यूँकर
हवा-प्रकाश जो देती कुदरत
उनको भी क्यूँ मुफ्त दिलाओ
कहीं पे तो विराम लगाओ !!
कितना बड़ा है उदर तुम्हारा ?
कितने में बोलो होगा गुज़ारा ?
जिस जनता ने चुना है तुमको
उसी को लूट-खसोट के खाओ !
कहीं पे तो विराम लगाओ !!
अभी तो जागा है एक अन्ना
बोलो क्या है तुम्हारी तमन्ना ?
सौ करोड़ अन्ना बन जाएँ
उस सैलाब में तुम बह जाओ ?
कहीं पे तो विराम लगाओ !!
इक दिन घड़ा सभी का भरता
'वो' सबका इन्साफ है करता
ऐसा न हो अगले दशहरे
तुम रावण का पात्र निभाओ
कहीं पे तो विराम लगाओ !!
सत्ताधारियों बाज़ आ जाओ !!!
बहुत गजब ललकारा है,
ReplyDeleteअब हिंदुस्तान हमारा है ||
बिल्कुल जी ! अब और सहन नहीं होता !!
Deleteधन्यवाद् संतोष जी ! :)
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