तुम करो मुझसे प्रेम-निवेदन
मैं स्वीकार न कर पाऊं
तुम दो उलझन मुझको
मैं हताशा दे जाऊं
इस विनिमय में क्या रखा है ?
सब जानकर अनजान बनो
देखकर अनदेखा करो
भेजो नित प्रेम संदेशे
मैं शून्य ही लौटा पाऊं
इस विनिमय में क्या रखा है ?
झूठी आशाएं तुम बांधो
स्वयं ही खुद को प्रलोभन दो
फिर दोष मुझे तुम इसका दो
बिन मेरे कुछ भी दिए
मेरी ओर से खुद को दो
इस विनिमय में क्या रखा है ?
देते रहो निस दिन उलाहने
ध्यान मेरा तुम पाने को
मैं न ध्यान ज़रा भी दूँ
तुम्हें यही समझाने को
मत करो वक्त ज़ाया अपना
इस विनिमय में क्या रखा है ?
इस पर अब विराम लगाओ
या तो सुलह का हाथ बढ़ाओ
या फिर अपने रस्ते जाओ
इस विनिमय में क्या रखा है ???
No comments:
Post a Comment
अगर आयें हैं तो कुछ फरमाएँ !