इतना भी मत तरसाओ
कि कमी तुम्हारी न खले
बहुत देख ली राह तुम्हारी
आ जाओ चुपचाप चले !
कहीं बरस के हद कर देते
कहीं की तुम लेते न खबर
कहीं ठिकाना बन जाता और
कहीं पकड़ते भी न डगर
बहुत हो गयी मनमानी अब
आओ के सूखा टले !
बहुत देख ली राह तुम्हारी
आ जाओ चुपचाप चले ........
. इतने नखरे भला हैं क्यूँकर
हमको भी तो बतलाओ
क्या कोई मांगें हैं तुम्हारी
ऐसा है, तो फरमाओ
इन्सां गर गर्मी न बढ़ाये
दाल तुम्हारी भी न गले
बहुत देख ली राह तुम्हारी
आ जाओ चुपचाप चले ........
No comments:
Post a Comment
अगर आयें हैं तो कुछ फरमाएँ !