आओ सखी मंगल गान गाएँ
आओ री तोरण-द्वार सजायें
बूढ़े वृक्ष पे फल आया है
उस पर हम बलिहारी जाएँ !
क्या है अवस्था, क्या है आयु
यह सब बातें बेमानी हैं
उजड़ा चमन भी लहराता है
यह बात अब समझ ही जाएँ !
खुला है बंद पिटारा कबसे
हुआ है उसका भाग्योदय
मिलें डाल से बिछड़े सुमन सब
इसी दुआ में हाथ उठायें !
देर हुई , पर मिला न्याय तो
उसकी लीला अपरम्पार
सब खोये अधिकार मिलेंगे
और मिलेगा पिता का प्यार !
जाने और कितने ही ऐसे
लावारिस हैं फूल बाग़ में
उनको भी माली मिल जाये
तो वे भी शुकर मनाएं !
आओ सखी मंगल गान गाएँ
आओ री तोरण-द्वार सजायें
बूढ़े वृक्ष पे फल आया है
उस पर हम बलिहारी जाएँ !
बहुत खूब.
ReplyDeleteऐसा भी होता है कभी कभी.
नाजायज वृक्ष का जायज फल.
या जायज वृक्ष का नाजायज फल.
सुन्दर प्रस्तुति.
बहुत-बहुत धन्यवाद राकेश जी :))
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