प्रिय तुम कहते हो
और सह न पाओगे
बिखर जाओगे
खंडित हो जाओगे !
किन्तु मेरा अधिक न बिगड़ेगा
क्योंकि मैं तो हूँ ही खंडित
हाँ ! सत्य सुना तुमने !
मैं खंड-खंड हूँ !
तुमने है चाहा खंडों को
जो रह चुके हैं कभी चूर्ण
और अब तक न
हो सके पूर्ण !
अतः मैं भयभीत
हो जाती हूँ
यह सोचकर कि
तुम्हारी वही परिणिति न हो
तुम चूर्ण न बनो कभी
तुम पूर्ण ही रहो सदा
तुम पूर्ण ही रहो सदा !!!
bahut khoobsoorat likha hai rachna ji
ReplyDeleteThnx a lot pearl !!
Deleteबहुत सुंदर और गहरी बात रचना जी .......... .
ReplyDeleteअत्यन्त आभार सानंद जी !!
Deleteबहुत सुन्दर रचना रची है , बॉय गोड की कसम खंड खंड बिचला दिया इस रचना ने
ReplyDeletethnx a lot saurabh :)))
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