Saturday, August 3, 2013

सम्बन्धों के हाशिये

अपेक्षित है सम्बन्धों का 
जीवन के केंद्र में होना 
पर प्राय: 
चले जाते हैं 
हाशिये पर वे 
सरक -सरक कर 
स्वार्थों, व्यस्तताओं और 
महत्वाकांक्षाओं की 
गाढ़ी तरलताओं की 
साज़िश का शिकार होकर ,
उनमे बह -बहकर !
और वहीं से चीख -चीखकर 
दुहाई माँगते हैं 
अपने प्राणों की !
सुन लिए जाने वाले 
बचा लिए जाते हैं 
कभी -कभार ,
हाशिये से खींच लाये जाते हैं 
परिधि के भीतर 
और अनसुने 
वहीं 
हाशिये का तट पकड़े 
मदद की गुहार लगाते 
अन्ततः 
छोड़ देते हैं हाथ 
तोड़ देते हैं दम !!

14 comments:

  1. relations are relations there is no substitute for them.......

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  2. रचना जी,
    एक बेहतरीन शब्दचित्र........सहजता से की गई बेहद गहरी अभिव्यक्ति .... हमसब के आस-पास की बात | आपको बधाई और शुभकामनाएं |

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  3. धन्यवाद सुशील जी , इस प्रतिक्रिया के लिए, और उत्साहवर्धन के लिए ……….

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  4. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (04-08-2013) के चर्चा मंच 1327 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

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    1. बहुत -बहुत धन्यवाद अरुण जी :)

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  5. सुन्दर अभिव्यक्ति रचना जी बहुत बहुत बधाई

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    1. बहुत धन्यवाद राजेन्द्र जी ! !

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  6. संबंधों को त्याग और समर्पण की दरकार होती है,,सही कहा आपने .. सुन्दर, अभिव्यक्ति रचना जी

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  7. बहुत धन्यवाद विजय जी :)

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  8. sundar abhivyakti...
    sambandho ki shandaar vyakhya...
    rishto ki baat maine bhi is baar apne blog par ki hai

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  9. हाशिये का तट पकड कर मदद की गुहार लगाते हैं,
    अन्ततः तोड देते हैं दम, साथ छोड देते हैं ।

    आज का निर्मम सत्य ।

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