Saturday, March 2, 2013

धूप का दुपट्टा




धूप  हौले-हौले उतार रही है 
अपना पीला दुपट्टा 
और दिखने लगे हैं 
उसके श्यामल केश 
संध्या के रूप में !
हवा से हिलते पत्ते 
मानो आसमां की बालियाँ !
कुछ ही देर में 
श्यामल केश खुल जायेंगे पूरे 
और लेंगे रूप निशा का !
पूरी रात  अपने 
लम्बे काले केश फैलाये 
निशा देगी 
थपकियाँ धरती को .....
फिर सुबह इक दस्तक से 
सूरज की 
टूटेगी निद्रा धरती की !!

7 comments:

  1. वाह वाह क्‍या बात हैं

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  2. shabdo me pure din-raat ka bakhan kar diya ... :)
    pyari si rachna..

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  3. सूर्य अस्त का मनमोहक चित्र याद आया ...आपकी रचना पढ़ कर

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