धूप हौले-हौले उतार रही है
अपना पीला दुपट्टा
और दिखने लगे हैं
उसके श्यामल केश
संध्या के रूप में !
हवा से हिलते पत्ते
मानो आसमां की बालियाँ !
कुछ ही देर में
श्यामल केश खुल जायेंगे पूरे
और लेंगे रूप निशा का !
पूरी रात अपने
लम्बे काले केश फैलाये
निशा देगी
थपकियाँ धरती को .....
फिर सुबह इक दस्तक से
सूरज की
टूटेगी निद्रा धरती की !!
वाह वाह क्या बात हैं
ReplyDeleteशुक्रिया सतीश जी :-)
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ReplyDeleteshabdo me pure din-raat ka bakhan kar diya ... :)
ReplyDeletepyari si rachna..
shukriya mukesh ji :)
ReplyDeleteसूर्य अस्त का मनमोहक चित्र याद आया ...आपकी रचना पढ़ कर
ReplyDeleteधन्यवाद निवेदिता जी :)
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