इतने युग, इतने वर्षों से
पावक तपीं इतनी सीतायें
देने को विविध परीक्षाएँ ,
अपने चरित्र की, दृढ़ता की
कि गंध भी उनकी देह की अब
अग्नियों को है लगती परिचित
सो प्रेम से वह अपना लेती !
जिस दिवस परीक्षा लेगा काल
शौर्यंवान औ धैर्यवान
औ निष्कलंक किसी राम की,
अग्नि भी न पहचानेगी
उस नव विचित्र आगन्तुक को,
न करेगी उसका आलिंगन ,
न होगा उसका दहन !
तब भूल यह तुम न करना ,
उसे मानने की पावन ,
क्यूँकि अग्नि तो है निर्मल
अपनाएगी केवल निश्छल
पर तिरस्कार वह कर देगी ,
जिसमें पायेगी तनिक भी छल ,
जिसमें न होगा सत्य का बल !
और हो जायेगा वह असफल !!

bahut khoob....
ReplyDeletethnx pearl of ocean :)
Deleteतभी तो बोलते हैं अग्नि परीक्षा ...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति
साभार !
धन्यवाद शिवनाथ कुमार जी :))
DeleteBahut Hi Umda....
ReplyDeleteआभार डॉ मोनिका जी :))
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