Sunday, October 16, 2011

सुनो ऐ ज़माना !

ऐ ज़माने मै तेरा शुक्रिया करूँ कैसे 
तूने ही दर्द-ओ-ग़म पीना है  सिखाया मुझको !
इस से पहले थी मै अनजान ग़म की राहों से 
तूने ही आ के राह-ऐ -अश्क दिखाया मुझको !!
न थी पेशानी मेरे माथे पे कभी आती
न थी मुस्कान इन लबों से ही कभी जाती ,
अब तो नस -नस में सलवटें पड़ी ऐसी
जैसे औज़ारों से किसी ने है बनाया मुझको !!



उम्मीद !

उम्मीद  क्यों करते हो तुम मुझसे प्यार की 
मैं खुद हूँ नमूना उम्मीद के मज़ार की 
माना कि मुझको फूल समझते हो तुम मगर 
उम्मीद न करना कभी इस पे बहार की ..............
         रिश्ता है पुराना  पवन से , मगर फिर भी
         सांस नही ली है अभी तक करार की
         सब कुछ तो सामने है, फिर भी ऑंखें हैं बेचैन
         आदत जो हो गयी है उनको इंतजार की ! 
 उम्मीद  क्यों करते हो तुम मुझसे प्यार की ..........
          नाहक़ ही तुम वफ़ा का क्यों सबूत देते हो
          बुझके क्या जलेगी ये शमां ऐतबार की
          दिल मेरा जैसे हो कोई उजड़ा हुआ चमन
          छोड़ दो कोशिश तुम इस पे इख़्तियार की !
  उम्मीद  क्यों करते हो तुम मुझसे प्यार की .............
           टूट गया दिल जो कभी, जुड़  नही सकता
           ईंट तुम कहाँ से लोगे क़रार की
           हमदर्दियों का गारा , चूना वो प्यार का
           चाँद बूँदें पहली बारिश की फुहार की !
  उम्मीद  क्यों करते हो तुम मुझसे प्यार की
  मैं खुद हूँ नमूना उम्मीद के मज़ार की ............



         

                

शिकवा

आज अपने वजूद से शिकवा है हमें 
ऐ खुदा अब तो बता दे तेरी रज़ा क्या है !
तू सुन रहा है तो बता दे मुझको 
मेरा गुनाह है क्या और मेरी सज़ा क्या है !!