Sunday, October 16, 2011

सुनो ऐ ज़माना !

ऐ ज़माने मै तेरा शुक्रिया करूँ कैसे 
तूने ही दर्द-ओ-ग़म पीना है  सिखाया मुझको !
इस से पहले थी मै अनजान ग़म की राहों से 
तूने ही आ के राह-ऐ -अश्क दिखाया मुझको !!
न थी पेशानी मेरे माथे पे कभी आती
न थी मुस्कान इन लबों से ही कभी जाती ,
अब तो नस -नस में सलवटें पड़ी ऐसी
जैसे औज़ारों से किसी ने है बनाया मुझको !!



10 comments:

  1. धीरज धरो...सब कुछ सामान्य हो जायेगा !

    शीर्षक भी लिख दिया करें !

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  2. हौसला अफज़ाई का शुक्रिया संतोषजी !

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  3. बहुत अच्छे श्रोता हैं आप :)

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  4. बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति !

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  5. Ehsan mano gMo ka jo
    Insan ko Insan bnate H
    =======>»«<=======
    or Zamane ka shukr kro
    jo Hme inn gMo se milate H

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  6. Iss drd-o-gam ney hi
    Insan ko Insan bnaya h

    Shukr kro Zmane ka jisne
    Iss drd se aashna kraya h

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