Wednesday, June 19, 2013

उत्तराखंड विपदा


तारणहार ही डूब रहे 
कैसी प्रलय है आयी  !
देखके तांडव प्रकृति का 
मौत भी है थर्रायी !

चहुँदिस हाहाकार मचा है 
चीखें हैं और रूदन 
पर्वत,पानी एक हो गये 
हेतु मनुज के मर्दन !
भक्ति में रमे भक्तों पर भी 
विधि को दया न आयी !!
देखके तांडव प्रकृति का 
मौत भी है थर्रायी !

ऐसे में भी नरपिशाच हैं 
चाल न अपनी छोड़ें 
चले यदि वश, शवों पे भी 
दौड़ाएं सत्ता के घोड़े !
जाने किस माटी से विधना ने 
इनकी खाल बनायी !!
देखके तांडव प्रकृति का 
मौत भी है थर्रायी !

बहुत हुआ विध्वंस 
हे मालिक, अब तो रोक लगा ले 
अपने भीतर सोयी करुणा 
को झकझोर जगा ले 
माँ बच्चों की, बच्चे माँ की 
देते तुझे दुहाई !!
देखके तांडव प्रकृति का 
मौत भी है थर्रायी !

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