Saturday, August 3, 2013

ईमानदारी

शुक्र है ईमानदारी को

उतनी फफूंदी नहीं लगी


जितनी थी अपेक्षित


इस भ्रष्टाचार की


उमस में !


तो हम यह मान लें


कि सिद्धांतों व आदर्शों के


वातानुकूलित यंत्र


कारगर हैं अब भी ...


शायद रहें हमेशा !


सभी हाथ व्यस्त नहीं हैं


बेईमानी के पाँव पखारने में,


उन्हें जूतियाँ पहनाने में !


कुछ मशगूल हैं


उनकी राहों में


काँटे बोने में .....


उन हाथों को हमें


संरक्षित करना होगा


तभी 'हम ' 


संरक्षित रह पायेंगे ......


2 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना, रचना जी क्या कहने

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    1. बहुत -बहुत धन्यवाद अरुण जी ……. :)

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