फ़ज़ूल हुईं कवायदें तमाम
दिलशिकन को भूल जाने की
कसरते ग़म कर गया
एक बार फिर से चश्मे नम !!
फिर सबा-ए-याद चली
फितरत-ए-मसीयत थी
या तेरा बस्फ-ए-बेवफाई
पारा-पारा हुई रूह मेरी
रही मुझसे न मेरी आशनाई !!
मिक्दार सदा रखा तूने
मेरी तड़प-ओ-अपनी बेरुखी का
मेरी हर नफ़स ने निभाया
रवाज़ तीर-ए-हुकमी का !
तेरी उम्मीद में
बुत ये बहुत जिंदा रहा
प्यामे-मर्ग से पहले
आखरी वज़ू कराने ही आ जा ..............
No comments:
Post a Comment
अगर आयें हैं तो कुछ फरमाएँ !