जब भी यह बरखा आती है
लगभग सब कुछ धो जाती है
लेकिन मैं तो धुल नहीं पाती
बल्कि कहीं खो जाती हूँ .........
बरखा देती औरों को
मधुमासी मीठापन
शीतलता और मुस्कान
लेकिन मैं तो रो जाती हूँ
दूर कहीं पे खो जाती हूँ ..........

धुंधली यादों के दर्पण को
धोकर साफ़ ये कर जाती है
सब प्रतिबिम्ब कहीं खोए जो,
उसमे जीवित हो उठते हैं
वही दृश्य और वही सम्वाद ,
वही स्फूर्ति, वही अवसाद
फिर से मन में भर जाते हैं ..........
फिर से भीग जाता है तन-मन
फिर से भीग जाते हैं नयन
सब कुछ भीगा हो जाता है
देह की माटी से लेकर के
उर की गहरी घाटी तक ............
वहीँ भटक कर रह जाती हूँ
वापिस नहीं मैं आ पाती हूँ !
वापिस नही मैं आ पाती हूँ ...............
आखिर क्यूँ आती है बरखा
तहस-नहस कर जाती मुझको
जीवन के चंचल सागर में
हलचल और मचा जाती है
आखिर बरखा क्यूँ आती है..........
आखिर बरखा क्यूँ आती है ?
जब बरखा तुम्हारी आँखों के कोरों से आएगी,
ReplyDeleteतब तुम्हारे गम को ,सारी उलझन को बहा ले जायेगी !
Nice One :) New Artical :- How To Show Yahoo Smiley's In Blogger Threaded Comments
ReplyDeleteTumne ni mgr Mne smjh liya k Brkha Q aati h..! :-)
ReplyDelete>> Qk ek Rchna ko ye
>> Rchna k liye uksati h
>> sayd brkha yun aati h
>> sayd brkha yun aati h
Really nice... spcly d lines...
>> deh ki mati se lekar,
urr ki ghati tak..!!!:-):-):-)
santosh ji, piush ji , PS ji, bahut abhar ap sbhi ka !!
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