Sunday, March 3, 2013

धूप-घड़ी


पलंग पर पड़े-पड़े
मैं देखती रही
कमरे की छत पर
चिपके
चौरस धूप के टुकड़े को
इंतज़ार करती
उसका आकार बदलने का
वो बदला
और सहसा मुझे
याद आया

जीवन का आकार बदलना
भाग्य की
धूप-घड़ी के
संग-संग !


8 comments:

  1. धूप के कुछ टुकड़े और जीवन का आकार बदलना ...बहुत सुंदर
    आपकी रचना 'धूप का दुपट्टा' भी बहुत खुबसुरत रचना है ...
    अपने ब्लॉग पर आने का निमंत्रण दे रही हूँ ....आप आयेगीं तो मुझे ख़ुशी होगी
    http://shikhagupta83.blogspot.in/2013/03/blog-post_4.html

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  2. This comment has been removed by the author.

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  3. बेहद प्रभाव साली रचना और आपकी रचना देख कर मन आनंदित हो उठा बहुत खूब

    आप मेरे भी ब्लॉग का अनुसरण करे

    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में

    तुम मुझ पर ऐतबार करो ।

    .

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  4. वाह बहुत खूबसूरत रचना...

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