हे मृगनयनी , झलक दिखा क्यूँ
मुझे नयन की
ओझल हो गयी ?
सौन्दर्य-रति, हे रूप-सुधा
हे शीत-दरश , कंचन- प्रतिमा
तेरी सौन्दर्य-सुधा का मुझसे
पान न पूरा हो पाया
जगा पिपासा प्यासे मन की
तू क्यूँ ओझल हो गयी ?
तेरे केशों की गंध भी
पूरी मुझ तक आई न थी !
अभी तो तेरी साँसों ने
मेरी साँसें महकायी न थीं !
ठंडक देने से पहले तू क्यूँ
अपने तन की , ओझल हो गयी ?
अभी तो मेरे सोये मन के
तारों ने बजना सीखा था !
अभी तो मेरे सपनों ने
पलकों में सजना सीखा था !
सुरभि फ़ैलाने से पहले
क्यों मधुबन की
ओझल हो गयी ?
नहीं कुसुम भी इतना कोमल
होगा तेरे जैसा !
पंखुड़ी का तन शायद होगा
कोमल तेरे जैसा !
छटा क्यों बिखराने से पहले
पंखुड़ी सुमन की
ओझल हो गयी ?
हे मृगनयनी , झलक दिखा क्यूँ
मुझे नयन की
ओझल हो गयी ?
दिल की नज़र से देखो,
ReplyDeleteवह तुम्हारे पास होगी,
हर साँस में अहसास होगी !
Ye vakaii behad umda h..! :-)
ReplyDeleteHriday ko eksath jankrit krnewali or vairagya bhav jganewali b..!!:-):-)
Alankar or lyatmkta b dekhte hi bnti h..!!! :-):-):-)
mujhe achraz hota h itne komal udgar pdh kr k kya ye usi Rchna ki Rchna h jo itni chanchal h..!! :-):-)
Dukh ye dekh kr hota hai k abtk iss pratibha ka prakash keval parichito k hridyon ko hi aalokit krska h..! :-(
hausla-afzayi k liye bahut-2 shukriya PS :)))
ReplyDeleteनारी सौंदर्य की एक नारी मन के माध्यम से खूबसूरत अभिव्यक्ति ......जो हिंदी काव्य में बहुत कम नज़र आता है ......
ReplyDeleteधन्यवाद पवन जी.. :)
Deleteमेरा मानना है कि सौंदर्य केवल सौंदर्य है, नारी और पुरुष, दोनों को उसकी सराहना करने में कोई झिझक नहीं होनी चाहिए....